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लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग 44 
कच लाल कमल के पुष्प लेकर आ गया था । वह सोच रहा था कि इन पुष्पों को ऐसे ही देवयानी को दे दे अथवा इनके आभूषण बनाकर दे ? उसके मन के अंदर से आवाज आई कि जब वह इतने परिश्रम से इन्हें लेकर आया है तो क्या वह इन्हें ऐसे ही देकर इनका और देवयानी का अपमान नहीं करेगा ? देवयानी ने कितनी आशा भरे नयनों से उसे देखा था । कितनी लालसा थी उन नेत्रों में इन लाल कमलों के प्रति । तो क्या वह इन्हें ऐसे ही उसके दर पर रखकर चला आयेगा ? नहीं, यह उचित नहीं होगा । उचित तो यही रहेगा कि इन्हें वह पहले अपनी कुटिया में ले जाये और इनके आभूषण तैयार करे । तत्पश्चात उन आभूषणों को देवयानी को भेंट में दे दे । लेकिन अगले ही क्षण उसे ध्यान आया कि कुटिया में वह एकाकी नहीं हैं । उसके साथ तीन और छात्र भी रहते हैं । वे इन लाल कमल और आभूषणों के संबंध में अवश्य ही पूछेंगे तब वह उन्हें क्या बतायेगा ? वे लोग उसके और देवयानी के बारे में क्या सोचेंगे ? उसके मन ने कहा "बात तो सही है । लोग पता नहीं क्या क्या कहानियां गढ़ लेते हैं ? कुटिया पर ले जाना सही नहीं होगा" । अंत में उसने इन पुष्पों को शिवालय ले जाना ही श्रेयस्कर समझा । 

उसके पैर अनायास ही शिवालय की ओर मुड़ गये । दूर से उसे शिवालय के द्वार पर एक आकृति दिखाई दी । रात घनी हो गई थी और अभी तक चंद्र देव आकाश में विहार करने निकले नहीं थे । संभवत: वे अपनी सैर की तैयारी कर रहे होंगे । मंदिर के नजदीक आने पर वह आकृति एक स्त्री की प्रतीत हो रही थी । "कौन हो सकती है वह स्त्री ? इतनी रात में वह यहां क्या कर रही है" ? कच सोचता जा रहा था और आगे बढ़ता जा रहा था । वह उस आकृति के एकदम निकट पहुंच गया । । इतने में वह आकृति बोली 
"कहां थे अब तक तुम ? सब लोग कितने चिंतित हो रहे हैं तुम्हारे लिये" ? 

अंधेरे में स्पष्ट कुछ दिखाई नहीं दे रहा था पर कच उस आवाज को पहचानता था । वह आवाज देवयानी की थी । कच के मन में आया कि वह कह दे "सब लोग परेशान हो रहे थे या सिर्फ तुम" ? पर जैसी उसकी प्रवृति है, वह कह नहीं पाया । बस इतना ही कह पाया था "तुमने ही तो लाल कमल लाने की अभिलाषा प्रकट की थी, बस वही लेकर आ रहा हूं" । कच ने लाल कमल वाली पोटली अपनी पीठ से उतार कर वहीं भूमि पर रख दी । 
"क्या लाल कमल ? क्या तुम इन्हें मेरे लिए लेकर आए हो उस सरोवर से ? तुमने इतना कष्ट उठाया मेरे लिए ? ये असंभव कार्य तुमने कैसे संभव कर दिया" ? देवयानी प्रसन्नता और उत्तेजना में बावली सी हो गई थी । 
"हां, मैं लेकर आया हूं इन लाल कमलों को । तुमने इनकी अभिलाषा की थी ना ? तुम्हारी अभिलाषा पूर्ण करने का दायित्व मेरा है देवयानी" । कच ने लंबी गहरी सांस छोड़ते हुए कहा । 
"क्या तुम सचमुच में लाल कमल ले आए हो ? दिखाओ तो, कहां हैं वे ? क्या वे इस पोटली में हैं" ? उसने बच्चों की तरह उछलते हुए पोटली की ओर इशारा कर कहा । "और हां, एक बात और । तुम मुझे देवयानी मत कहा करो । मैं तुम्हारे मुंह से कुछ और नाम सुनना चाहती हूं" । देवयानी तनिक लजाकर बोली । उस पर कच के प्रेम का प्रभाव दिखाई दे रहा था । 
"देवयानी के अतिरिक्त मैं तुम्हें और क्या कहूं, यानी" ? कच ने नीचे दृष्टि करते हुए कहा । 

कच के द्वारा "यानी" संबोधन सुनकर देवयानी उछल पड़ी थी । वह शीघ्रता से बोली "ये जो तुमने अभी अभी मेरा आधा नाम लिया था ना, "यानी", यही बोला करो । ये नाम मुझे पसंद आ गया है" आनंद मग्न होते हुए देवयानी बोली । 
"ठीक है, जैसी तुम्हारी इच्छा, यानी । आगे से मैं तुम्हें यानी ही बोला करूंगा । अब ठीक है ? अब मैं जाकर अपना काम कर लूं" ? कच अपना काम शीघ्र ही पूर्ण करना चाह रहा था । 
"अब इतनी रात में क्या काम करोगे तुम ? इतने थके हुए हो । शीघ्र ही हाथ मुंह धो लो और भोजन कर लो , भोजन तैयार है" । देवयानी उसे अपनी कुटिया में चलने के लिए कह रही थी । 
"नहीं, पहले अपना काम पूर्ण करूंगा , तत्पश्चात भोजन करूंगा" । कच दृढ़संकल्प किये हुए था । 
"भोजन से भी अधिक आवश्यक और क्या काम है जिसे पहले करना है" ? देवयानी ने कौतुहल पूर्वक पूछा 
"है कुछ आवश्यक कार्य" कच लाल कमलों से आभूषण बनाने वाली बात बताना नहीं चाहता था । किन्तु देवयानी ने हठ पकड़ ली तो कच को बताना ही पड़ गया 
"वो क्या है कि मैं इन लाल कमलों से तुम्हारे आभूषण बनाऊंगा" । कच ने धीमी आवाज में कहा । कच की बात सुनकर देवयानी अचंभित हो गई । उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ । वह कहने लगी 
"क्या कहा तुमने" ? उसके स्वर में आश्चर्य ही आश्चर्य था ।
"इन लाल कमल के पुष्पों से मैं तुम्हारे लिए आभूषण बनाऊंगा और तुम्हें उपहार में दूंगा" । कच ने एक मधुर मुस्कान के साथ कहा 
"सच ? क्या तुम मेरे लिए इन पुष्पों से आभूषण बनाओगे" ? देवयानी के आश्चर्य का कोई ओर छोर नहीं था । 
"हां, मैं तुम्हारे लिए इनसे आभूषण बनाऊंगा" । शान्त स्वर में कच ने कहा । 
"अच्छा, क्या क्या आभूषण बनाओगे मेरे लिए " चहकते हुए देवयानी बोली । उसे अभी तक विश्वास नहीं हो रहा था । 
"यही कर्णफूल , अवतंस, मेखला, बाजूबंद, कंगन , पायल, मुकुट, गजरा आदि आदि" । 
"क्या तुम्हें आभूषण बनाना आता है" ? 
"हां, मैं जानता हूं" 
"क्या तुमने पहले भी किसी और युवती के लिए पुष्पों के आभूषण बनाये हैं" ? 

देवयानी के मन में शंका ने जन्म ले लिया था । स्त्रियों का चरित्र भी बड़ा विचित्र होता है । उन्हें पुरुष के चरित्र पर बड़ी जल्दी संदेह हो जाता है । देवयानी को लगा कि कच ने पहले किसी और युवती के लिए पुष्प आभूषण तैयार किये हैं । यदि ऐसा है , तो उसके मन में कच के लिए उपजा प्रेम रूपी पौधा यहीं पर ही मृत हो जाएगा । 
"नहीं, मैंने पहले कभी किसी के लिए किसी भी प्रकार के कोई आभूषण नहीं बनाये हैं" । 
कच ने देवयानी के समस्त संदेह एक ही उत्तर से ध्वस्त कर दिये । इन शब्दों को सुनकर देवयानी को इतनी शान्ति मिली थी कि वह अवर्णनीय थी । वह प्रसन्नता से उछलते हुए बोली 
"अच्चा एक काम करो , तुम इन लाल पुष्पों को मंदिर में लेकर चलो , मैं अभी सुंई धागा लेकर आती हूं । फिर हम दोनों मिलकर आभूषण बनायेंगे" । देवयानी ने बहुत आशा भरी निगाहों से कच की ओर देखा । कच ने भी मौन सहमति प्रदान कर दी । देवयानी उछलती कूदती हुई अपनी कुटिया चली गई और कच वह पोटली लेकर मंदिर में आ गया । 

मंदिर में कोई नहीं था । घना अंधकार छाया हुआ था । हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था । तारों की टिमटिमाहट से हलकी हलकी रोशनी हो रही थी । मंदिर में फर्श पर उसने लाल कमलों वाली पोटली खोल दी । धीरे धीरे लाल कमलों में से प्रकाश होने लगा । वास्तव में वे दैवीय पुष्प थे । लाल कमलों में से चमकते प्रकाश को देखकर कच को भी बहुत आश्चर्य हुआ । प्रकृति में ऐसे पता नहीं कितने रहस्य छुपे हुए हैं जिनसे मनुष्य अभी तक अनजान बना हुआ है । किन्तु जब वे रहस्य उसके सम्मुख प्रकट होते हैं तब मनुष्य प्रकृति की महत्ता को स्वीकार करता है अन्यथा वह स्वयं को ही "अभिभूत, अधियज्ञ और अधिदैव"  समझ लेता है । ऐसी विचित्र किन्तु सत्य घटनाओं से उसे परमात्मा की सत्ता का अहसास होता है । 

इतने में देवयानी अपनी कुटिया से सुंई और धागा लेकर आ गई । कच और देवयानी दोनों मिलकर लाल कमल पुष्पों से आभूषण बनाने लगे । शीघ्र ही दोनों ने अपना कार्य पूर्ण कर लिया । कच उन आभूषणों को देवयानी को देकर कहने लगा "मेरी ओर से एक तुच्छ भेंट स्वीकार करो, यानी" । कच के स्वर में विनम्र आग्रह था । 
"ऐसे नहीं, इन्हें पहनाओ तब मैं इन्हें स्वीकार करूंगी" । देवयानी कच की आंखों में देखकर बोली । 

कच देवयानी को इंकार नहीं करना चाहता था इसलिए वह एक एक आभूषण देवयानी को पहनाता जा रहा था और देवयानी उसके प्रेम के सागर में गहरी उतरती जा रही थी । 

श्री हरि 
14.7.2023 



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6 Comments

Gunjan Kamal

16-Jul-2023 12:55 AM

👌👏

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Hari Shanker Goyal "Hari"

16-Jul-2023 01:22 PM

🙏🙏

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Varsha_Upadhyay

15-Jul-2023 07:41 PM

बहुत खूब

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Hari Shanker Goyal "Hari"

16-Jul-2023 01:23 PM

हार्दिक अभिनंदन मैम

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Alka jain

15-Jul-2023 02:43 PM

Nice one

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Hari Shanker Goyal "Hari"

16-Jul-2023 01:23 PM

हार्दिक अभिनंदन मैम

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